तीसरा अध्याय : सेनापतियों सहित महिषासुर का वध

****** ध्यान ******

जगदम्बा के श्रीअड्रों की कानति उदय काल के सहस्त्रों सूर्यो के समान है। वे लाल रंग की रेशमी साड़ी पहने हुए हैं। उनके गले में मुण्ड माला शोभा पा रही है। दोनों स्तनों पर रक्त चन्दन का लेप लगा है।वे अपने कर-कमलों में जप मालिका, विद्या और अभय तथा वर नामक मुद्राएँ धारण किये हुए हैं। तीन नेत्रों से सुशोभित मुखारविन्द की बड़ी शोभा हो रही है। उनके मस्तक पर चन्द्रमा के साथ ही रत्नमय मुकुट बंधा है तथा वे कमल के आसन पर विराजमान हैं। ऐसी देवीको मैं भक्ति पूर्वक प्रणाम करता (करती) हूँ।

ऋषि कहते हैं— देत्योंकी सेना को इस प्रकार तहस-नहस होते देख महादेत्य सेनापति चिश्षर क्रोध में भरकर अम्बिकादेवी से युद्ध करनेके लिये आगे बढ़ा॥ वह असुर रणभूमि में देवी के ऊपर इस प्रकार बाणों की वर्षा करने लगा, जैसे बादल मेरु गिरि के शिखर पर पानी को धार बरसा रहा हो॥ तब देवी ने अपने बाणों से उसके बाण समूह को अनायास ही काटकर उसके घोड़ों और सारथिको भी मार डाला॥ साथ ही उसके धनुष तथा अत्यन्त ऊँची ध्वजा को भी तत्काल काट गिराया। धनुष कट जाने पर उसके अड्डों को अपने बाणों से बींध डाला॥ ५॥ धनुष, रथ, घोड़े और सारथिके नष्ट हो जानेपर वह असुर ढाल और तलवार लेकर देवी की ओर दौड़ा॥ उसने तीखी धार वाली तलवार से सिंह के मस्तक पर चोट करके देवी की भी बायीं भुजा में बड़े वेग से प्रहार किया राजन्‌! देवी की बॉह पर पहुँचते ही वह तलवार टूट गयी, फिर तो क्रोध से लाल आँखें कर के उस राक्षस ने शूल हाथ में लिया।॥ ओर उसे उस महादेत्य ने भगवती भद्गकाली के ऊपर चलाया। वह शूल आकाश से गिरते हुए सूर्यममण्डल की भाँति अपने तेज से प्रज्वलित हो उठा॥

उस शूल को अपनी ओर आते देख देवी ने भी शूल का प्रहार किया। उससे राक्षस के शूल के सैकड़ों टुकड़े हो गये, साथ ही महादेत्य चिक्षुर की भी धज्नियाँ उड़ गयीं। वह प्राणों से हाथ धो बैठा॥

महिषासुर के सेनापति उस महा पराक्रमी चिक्षुर के मारे जाने पर देवताओं को पीड़ा देने वाला चामर हाथी पर चढ़कर आया। उसने भी देवी के ऊपर शक्तिका प्रहार किया, किंतु जगदम्बा ने उसे अपने हुकार से ही आहत एवं निष्प्रभ करके तत्काल पृथ्वी पर गिरा दिया॥ शक्ति ट्टकर गिरी हुई देख चामर को बड़ा क्रोध हुआ। अब उसने शूल चलाया, किंतु देवी ने उसे भी अपने बाणों द्वारा काट डाला॥ इतने में ही देवी का सिंह उछलकर हाथी के मस्तक पर चढ़ बैठा और उस देत्य के साथ खूब जोर लगाकर बाह युद्ध करने लगा॥ वे दोनों लड़ते-लड़ते हाथी से पृथ्वी पर आ गये और अत्यन्त क्रोध में भरकर एक-दूसरे पर बड़े भयंकर प्रहार करते हुए लड़ने लगे॥ तदनन्तर सिंह बड़े वेग से आकाश की ओर उछला और उधर से गिरते समय उसने पंजों की मार से चामर का सिर धड़ से अलग कर दिया॥ इसी प्रकार उदग्र भी शिला ओर वृक्ष आदि की मार खाकर रणभूमि में देवी के हाथ से मारा गया तथा कराल भी दातों, मुक्कों और थप्पड़ों की चोट से धराशायी हो गया॥ क्रोध में भरी हुईं देवी ने गदाकी चोट से उद्धत का कचूमर निकाल डाला। भिन्दि पाल से वाष् कल को तथा बाणों से ताम्र और अन्धक को मौत के घाट उतार दिया॥ तीन नेत्रों वाली परमेश्वरी ने त्रिशूल से उग्रास्य, उग्रवीर्य तथा महाहनु नामक देत्य को मार डाला॥ तलवार की चोट से विडाल के मस्तक को धड़ से काट गिराया। दुर्धर और दुर्मख–इन दोनों को भी अपने बाणों से यमलोक भेज दिया॥

इस प्रकार अपनी सेना का संहार होता देख महिषासुर ने भेंसे का रूप धारण करके देवी के गणों को त्रास देना आरम्भ किया॥ किन्हीं को थूथुन से मारकर, किन्हीं के ऊपर खुरों का प्रहार करके, किन्हीं-किन्हीं को पूँठ से चोट पहुँचाकर, कुछ को सींगों से विदीर्ण करके, कुछ गणों को वेग से, किन्हीं को सिंहनाद से, कुछ को चक्कर देकर और कितनों को निःश्वास-वायु के झोंके से धराशायी कर दिया इस प्रकार गणोंकी सेनाको गिराकर वह असुर महादेवी के सिंह को मारने के लिये झपटा । इससे जगदम्बा को बड़ा क्रोध हुआ।॥ उधर महा पराक्रमी महिषासुर भी क्रोध में भरकर धरती को खुरों से खोदने लगा तथा अपने सींगों से ऊँचे-ऊँचे पर्वतों को उठाकर फेंकने और गर्जने लगा॥ उसके वेग से चक्कर देने के कारण पृथ्वी क्षुब्ध होकर फटने लगी । उसकी पूँछ से टकराकर समुद्र सब ओर से धरती को डुबोने लगा ॥ हिलते हुए सींगों के आधघात से विदीर्ण होकर बादलों के टुकड़े-टुकड़े हो गये । उसके श्रास की प्रचण्ड वायु के वेग से उड़े हुए सैकड़ों पर्वत आकाश से गिरने लगे ॥ इस प्रकार क्रोधमें भरे हुए उस महादेत्य को अपनी ओर आते देख चण्डिका ने उसका वध करनेके लिये महान्‌ क्रोध किया ॥ उन्होंने पाश फेंककर उस महान्‌ असुरको बाँध लिया ।उस महासंग्राम में बँध जाने पर उसने भेंसे का रूप त्याग दिया ॥ और तत्काल सिंह के रूपमें वह प्रकट हो गया । उस अवस्था में जगदम्बा ज्यों ही उसका मस्तक काटने के लिये उद्यत हुईं, त्यों ही वह खड़्गधारी पुरुष के रूप में दिखायी देने लगा॥ तब देवी ने तुरंत ही बाणों की वर्षा कर के ढाल और तलवार के साथ उस पुरुष को भी बींध डाला । इतने में ही वह महान्‌ गजराज के रूप में परिणत हो गया ॥ तथा अपनी सूँड़ से देवी के विशाल सिंह को खींचने और गर्जने लगा । खींचते समय देवी ने तलवार से उस की सूड़ काट डाली ॥ तब उस महादेत्य ने पुनः भेंसे का शरीर धारण कर लिया और पहले की ही भाँति चराचर प्राणियों सहित तीनों लोकों को व्याकुल करने लगा ॥ तब क्रोधमें भरी हुई जगन् माता चण्डिका बारंबार उत्तम मधु का पान करने और लाल आँखें करके हँसने लगीं॥ ३४ ॥ उधर वह बल और पराक्रम के मद से उन्मत्त हुआ राक्षस गर्जने लगा और अपने सींगों से चण्डी के ऊपर पर्वतों को फेंकने लगा॥ ३५॥ उस समय देवी अपने बाणों के समूहों से उसके फेंके हुए पर्वतों को चूर्ण करती हुई बोलीं । बोलते समय उनका मुख मधु के मद से लाल हो रहा था और वाणी लड़खड़ा रही थी॥ ३६॥

देवीने कहा–॥ ३७॥ ओ मूढ़! मैं जब तक मधु पीती हूँ, तबतक तू क्षण भर के लिये खूब गर्ज ले। मेरे हाथ से यहीं तेरी मृत्यु हो जाने पर अब शाधघ्र ही देवता भी गर्जना करेंगे॥ ३८॥

ऋषि कहते हैं–॥ ३९॥ यों कह कर देवी उछलीं और उस महादेत्य के ऊपर चढ़ गयीं। फिर अपने पैर से उसे दबाकर उन्होंने शूल से उसके कण्ठ में आघात किया॥ ४०॥ उनके पैर से दबा होने पर भी महिषासुर अपने मुख से दूसरे रूप में बाहर होने लगा अभी आधे शरीर से ही वह बाहर निकल पाया था कि देवी ने अपने प्रभाव से उसे रोक दिया॥ ४१॥ आधा निकला होने पर भी वह महादेत्य देवी से युद्ध करने लगा। तब देवी ने बहुत बड़ी तलवार से उसका मस्तक काट गिराया॥ ४२॥ फिर तो हाहाकार करती हुई देत्यों की सारी सेना भाग गयी तथा सम्पूर्ण देवता अत्यन्त प्रसन्न हो गये॥ ४३ ॥ देवताओं ने दिव्य महर्षियों के साथ दुर्गा देवी का स्तवन किया। गन्धर्वराज गाने लगे तथा अप्सराएँ नृत्य करने लगीं॥ ४४॥

इस प्रकार श्रीमार्कण्डेयपुराण में सावर्णिक मन्वन्तरकी कथा के अन्तर्गत  देवीगाहात्म्य में "महिषासुर वध" नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ॥ ३ ॥