बारहवाँ अध्याय: देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य

****** विनियोग ******

मैं तीन नेत्रों वाली दुगदि्‌वी का ध्यान करता ( करती ) हूँ, उनके श्रीअड्रों की प्रभा बिजली के समान है। वे सिंह के कंधे पर बैठी हुई भयंकर प्रतीत होती हैं। हाथों में तलवार और ढाल लिये अनेक कन्याएं उनकी सेवा में खड़ी हैं। वे अपने हाथों में चक्र, गदा, तलवार, ढाल, बाण, धनुष, पाश और तर्जनी मुद्रा धारण किये हुए हैं। उनका स्वरूप अग्रिमय है तथा वे माथे पर चन्द्रमाका मुकुट धारण करती हैं।

देवी बोलीं— देवताओ! जो एकाग्रचित्त होकर प्रतिदिन इन स्तुतियों से मेरा स्‍्तवन करेगा, उस की सारी बाधा में निश्चय ही दूर कर दूँगी॥ जो मधुकैटभका नाश, महिषासुर का वध तथा शुम्भ-निशुम्भ के संहार के प्रसड़रका पाठ करेंगे॥ तथा अष्टमी, चतुर्दशी और नवमी को भी जो एकाग्रचित्त हो भक्तिपूर्वक मेरे उत्तम माहात्म्यका श्रवण करेंगे॥ उन् हें कोई पाप नहीं छू सकेगा। उन पर पाप जनित आपत्तियाँ भी नहीं आयेंगी। उनके घर में कभी दरिद्रता नहीं होगी तथा उनको कभी प्रेमीजनों के विछोहका कष्ट भी नहीं भोगना पड़ेगा॥ इतना ही नहीं, उन्हें शत्रु से, लुटेरों से, राजा से, शस्त्र से, अग्रि से तथा जल की राशि से भी कभी भय नहीं होगा॥ इसलिये सबको एकाग्रचित्त होकर भक्तिपूर्वक मेरे इस माहात्म्यको सदा पढ़ना और सुनना चाहिये। यह परम कल्याण कारक है॥ मेरा माहात्म्य महामारी जनित समस्त उपद्रवों तथा आध्यात्मिक आदि तीनों प्रकार के उत्पातों को शान्त करने वाला है॥ मेरे जिस मन्दिर में प्रतिदिन विधि पूर्वक मेरे इस माहात्म्यका पाठ किया जाता है, उस स्थान को में कभी नहीं छोड़ती। वहाँ सदा ही मेरा सन्निधान बना रहता है॥ बलिदान, पूजा, होम तथा महोत्सवके अवसरोंपर मेरे इस चरित्रका पूरा-पूरा पाठ और श्रवण करना चाहिये॥ ऐसा करनेपर मनुष्य विधिको जानकर या बिना जाने भी मेरे लिये जो बलि, पूजा या होम आदि करेगा, उसे मैं बड़ी प्रसन्नता के साथ ग्रहण करूँगी॥ शरत्काल में जो वार्षि क महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे इस माहात्म्यको भक्ति पूर्वक सुनेगा, वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा–इसमें तनिक भी संदेह नहीं है॥ मेरे इस माहात्म्य, मेरे प्रादर्भाव की सुन्दर कथाएँ तथा युद्धमें किये हुए मेरे पराक्रम सुनने से मनुष्य निर्भय हो जाता है॥ मेरे माहात्म्यका श्रवण करने वाले पुरुषों के शत्रु नष्ट हो जाते हैं, उन् हें कल्याण की प्राप्ति होती तथा उनका कुल आनन्दित रहता है॥ सर्वत्र शान्ति-कर्म में, बुरे स्वप्न दिखायी देने पर तथा ग्रह जनित भयंकर पीड़ा उपस्थित होने पर मेरा माहात्म्य श्रवण करना चाहिये॥ इससे सब विदश्न तथा भयंकर ग्रह-पीड़ाएं शान्त हो जाती हैं और मजनुष्योंद्वारा देखा हुआ दुःस्वप्न शुभ स्वप्रमें परिवर्तित हो जाता है॥ बालग्रहोंसे आक्रान्त हुए बालकोंके लिये यह माहात्म्य शान्ति कारक है तथा मनुष्योंके संगठनमें फूट होने पर यह अच्छी प्रकार मित्रता कराने वाला होता है॥ यह माहात्म्य समस्त दुराचारियों के बल का नाश कराने वाला है। इसके पाठमात्र से राक्षसों, भूतों और पिशाचों का नाश हो जाता है॥ मेरा यह सब माहात्म्य मेरे सामीप्य की प्राप्ति कराने वाला है। पशु, पुष्प, अर्घ्य, धूप, दीप, गन्ध आदि उत्तम सामग्रियोंद्वारा पूजन करने से, ब्राह्मणों को भोजन करानेसे, होम करने से, प्रतेदिन अभिषेक करने से, नाना प्रकारके अन्य भोगों का अर्पण करने से तथा दान देने आदिसे एक वर्षतक जो मेरी आराधना की जाती है और उससे मुझे जितनी प्रसन्नता होती है, उतनी प्रसन्नता मेरे इस उत्तम चरित्रका एक बार श्रवण करनेमात्र से हो जाती है। यह माहात्म्य श्रवण करने पर पापों को हर लेता और आरोग्य प्रदान करता है॥ मेरे प्रादुर् भावका की र्तन समस्त भूतों से रक्षा करता है तथा मेरा युद्ध विषयक चरित्र दुष्ट देत्योंका संहार करने वाला है॥ इसके श्रवण करने पर मनुष्यों को शत्रु का भय नहीं रहता। देवताओ! तुमने और ब्रह्र्षियोंने जो मेरी स्तुतियाँ की हैं॥ तथा ब्रह्माजीने जो स्तुतियाँ की हैं, वे सभी कल्याणमयी बुद्धद्रि प्रदान करती हैं। वन में, सूने मार्ग में अथवा दावानल से घिर जाने पर॥ निर्जन स्थान में, लुटेरों के दाव में पड़ जाने पर या श॒त्रुओं से पकड़े जाने पर अथवा जंगल में सिंह, व्याप्र या जंगली हाथियों के पीछा करनेपर॥ कुपित राजा के आदेश से वध या बन्धन के स्थान में ले जाये जाने पर अथवा महासागर में नाव पर बैठने के बाद भारी तूफान से नावके डगमग होने पर॥ और अत्यन्त भयंकर युद्ध में शस्त्रों का प्रहार होने पर अथवा बेदना से पीड़ित होनेपर, किं बहुना, सभी भयानक बाधाओं के उपस्थित होनेपर॥ जो मेरे इस चरित्र का स्मरण करता है, वह मनुष्य संकट से मुक्त हो जाता है। मेरे प्रभाव से सिंह आदि हिंसक जनन्‍्तु नष्ट हो जाते हैं तथा लुटेरे और शत्रु भी मेरे चरित्र का स्मरण करने वाले पुरुष से दूर भागते हैं॥

ऋषि कहते हैं— यों कह कर प्रचण्ड पराक्रम वाली भगवती चण्डिका सब देवताओं के देखते-देखते वहीं अन्तर्धान हो गयीं। फिर समस्त देवता भी शत्रुओं के मारे जाने से निर्भय हो पहले की ही भाँति यज्ञभाग का उपभोग करते हुए अपने- अपने अधिकार का पालन करने लगे। संसार का विध्वंस करने वाले महाभयंकर अतुलपराक्रमी देवशत्रु शुम्भ तथा महाबली निशुम्भ के युद्ध में देवी द्वारा मारे जाने पर शेष देत्य पाताल लोक में चले आये॥ राजन्‌! इस प्रकार भगवती अम्बिका देवी नित्य होती हुई भी पुनः-पुनः प्रकट होकर जगत्‌ की रक्षा करती हैं॥ वे ही इस विश्वको मोहित करतीं, वे ही जगत्‌ को जन्म देतीं तथा बे ही प्रार्थना करने पर संतुष्ट हो विज्ञान एवं समृद्द्धि प्रदान करती हैं॥ राजन! महा प्रलय के समय महामारी का स्वरूप धारण करने वाली वे महाकाली ही इस समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं॥ वे ही समय-समय पर महामारी होती और वे ही स्वयं अजन्मा होती हुई भी सृष्टि के रूपमें प्रकट होती हैं। वे सनातनी देवी ही समयानुसार सम्पूर्ण भूतों की रक्षा करती हैं॥ मनुष्यों के अभ्युदय के समय वे ही घरमें लक्ष्मी के रूपमें स्थित हो उन्नति प्रदान करती हैं और वे ही अभाव के समय दरिद्रता बनकर विनाशका कारण होती हैं॥ पुष्प, धूप और गन्ध आदि से पूजन करके उनकी स्तुति करने पर वे धन, पुत्र, धामिक बुद्धि तथा उत्तम गति प्रदान करती हैं॥

इस प्रकार श्रीमार्कण्डेयपुराणमें सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अन्तर्गत देवीगाहात्म्य में "फलस्तुति" नामक बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १२ ॥